चूरू जिले के सरदारशहर नगर परिषद में हाल ही में एक बड़ा राजनीतिक ड्रामा देखने को मिला, जब नगर परिषद सभापति राजकरण चौधरी के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं हो सकी। इस पूरे घटनाक्रम के पीछे मुख्य किरदार बने भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक राजेंद्र राठौड़, जिन्होंने अपने राजनीतिक अनुभव और चतुराई से पूरी तस्वीर ही पलट दी।

बगावत की शुरुआत और कांग्रेस का साथ
करीब एक महीने पहले सरदारशहर नगर परिषद के सभापति राजकरण चौधरी के खिलाफ भाजपा के बागी पार्षदों ने कांग्रेस के साथ मिलकर अविश्वास प्रस्ताव लाया था। पार्षदों का आरोप था कि सभापति पर गंभीर अनियमितताओं और मनमानी का आरोप है। कांग्रेस भी इस प्रस्ताव के समर्थन में आ गई, जिससे लगने लगा कि अब राजकरण चौधरी की कुर्सी जाना तय है।
डैमेज कंट्रोल की जिम्मेदारी राठौड़ को मिली
जब यह मामला गंभीर होता गया, तब भाजपा नेतृत्व ने पूर्व विधायक राजेंद्र राठौड़ को इस संकट को संभालने की जिम्मेदारी दी। राठौड़ ने बागी पार्षदों से संवाद किया, उनकी समस्याएं सुनी और भाजपा को एकजुट रखने के लिए रणनीति बनाई।
निर्वाचन अधिकारी की छुट्टी और राजनीतिक अटकलें
वोटिंग के दिन निर्वाचन अधिकारी के अवकाश पर चले जाने से अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया रोक दी गई। इस पर राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गईं। कुछ लोगों ने इसे राठौड़ की रणनीति बताया, तो कुछ ने इसे प्रशासनिक चूक करार दिया। हालांकि, इससे भाजपा को संभलने का समय जरूर मिल गया।
अंतिम दिन बड़ा खेल, बागी पार्षदों की घर वापसी
वोटिंग के दिन सबसे बड़ा ट्विस्ट तब आया जब पहले नाराज़ चल रहे कई पार्षद वोटिंग के समय राजेंद्र राठौड़ के साथ नगर परिषद कार्यालय पहुंचे। इन पार्षदों ने या तो मतदान में हिस्सा नहीं लिया या फिर प्रस्ताव के विरोध में खड़े हो गए। इससे अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं हो सका और राजकरण चौधरी की कुर्सी सुरक्षित रह गई।
क्या मांगें मानी गईं या दबाव में बदला फैसला?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो पार्षद पहले राजकरण चौधरी पर गंभीर आरोप लगा रहे थे, उन्होंने अचानक अपना रुख क्यों बदल लिया? क्या उनकी शिकायतें सुलझा दी गईं या राजनीतिक समझौते हुए? या फिर राजेंद्र राठौड़ ने उनकी कोई बड़ी मांग मान ली? इन सवालों के जवाब तो समय ही देगा, लेकिन इससे राजनीति में गठजोड़ की सच्चाई सामने जरूर आई है।
भाजपा हाईकमान को दिखाई ताकत
इस पूरे घटनाक्रम से यह बात साफ हो गई कि राजेंद्र राठौड़ ने न केवल पार्टी में एकता बनाए रखी, बल्कि भाजपा के बागी पार्षदों को भी पुनः पार्टी में शामिल करवा दिया। उन्होंने यह दिखा दिया कि चूरू की राजनीति में उनकी पकड़ अभी भी मजबूत है और भाजपा हाईकमान को अपनी राजनीतिक ताकत का अहसास भी करा दिया।
जनता और विकास का क्या हुआ?
अब सवाल यह भी उठता है कि इस सियासी खेल में शहर की जनता और विकास का क्या हुआ? क्या पार्षदों के लिए पार्टी और नेता पहले हैं या जनता की समस्याएं? सभापति पर लगाए गए आरोप अगर सही थे, तो उनका समाधान नहीं हुआ। और अगर गलत थे, तो पहले उन पर सवाल क्यों उठाए गए?
नए संकल्प के साथ आगे बढ़ने का दावा
राजेंद्र राठौड़ ने इस मौके पर कहा कि अब समय है “डबल इंजन सरकार” की ताकत से सरदारशहर को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने का। उन्होंने कहा कि भाजपा मिलकर नगर परिषद को मजबूत बनाएगी और क्षेत्र के हर नागरिक को विकास का लाभ मिलेगा।
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